सु नहीं सरकार, सुणै तो दरद सुणावां।

मुलक आजादी मांय, क्यूं आजाद कहावां।

रहणो राजस्थान, माण- मरजाद मोड़ा।

हरदम रह हद मांय, सुजस रा आखर जोड़ां।

मदद करया गुण मानस्यां, अदद ओक अरदास है।

मायड़ भासा मानता, जो देवै सो खास है॥

सबळ हिंद संविधान, बाण जिणरी हद बांकी।

हिरदै रखां हमेस, जिकण री सुंदर झांकी।

अधिकारां सूं अवल्ल, नित्त कर्त्तव्य निभावां।

सुभट जाय संग्राम, वतन री लाज बचावां।

बस इतरी सी है वीणती, ताळो रसनां तोड़द्यो।

अष्टम् अनुसूची मांयनै, राजस्थानी जोड़यो॥

अेक पखै आजाद, पख्ख बीजै परतंतर।

बोली माथै बंद, सांस लेवण सुतंतर।

मन में मुरझै मोद, दरद दिल मांय दबावां।

वाणी बिना विसेस, बात किण भांत बतावां।

विगत रा ज्ञान-विज्ञान सब, मायड़ भासा में मिळै।

कंठ करोड़ करुणां करै, संविधान नहीं सांभळै॥

है सूरज हिंदवाण, जको रजथानी जायो।

पातल राण प्रताप, मुलक माण बढायो।

मीरां री महमाय, अलू ईसर उपजाणी।

पन्नां री अंब, रीत मरजाद रखाणी।

बा मायड़ जो बड़भागणी, आज अभागण सी खड़ी।

आस लियां देखै अटल, आस अकासां जा चढ़ी॥

स्रोत
  • सिरजक : गजादान चारण 'शक्तिसुत' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी