क्यूं मायड़ चौईस ई घड़ी
म्हारै ओळू-दोळू इज रेह्वे?
नीं छोड़ै कदैई म्हनै अेकली!
नीं भेजे म्हनै अेकली बजारां रै मांय।
पाव घड़ी पड़ौस मांय जावै तोई
जीव चढ्यौ रौ चढ्यौ रेह्वै
अर आता ईन पूछे —
सोनू! कांई कर र्यी है?
जद कदैई वा बारै निकळै,
पांच भोळावण दे’णौ नीं भूले —
देख! बारै निकळजै मती,
गोखड़ा सूं झांकजै मती,
जे कोई बैल बजावै तो
जाळी सूं ई पूछ लैवजै,
मंगता-कांगा नै बा'रै निकळ'र
कांई देवजै मती
म्हैं आवूं जितरै सोवजै मती,
म्हैं आ ग्यी अर आ आई...।
म्हैं बार-बार सोच्यूं 'कै
ई भोळावण है 'कै म्हारी लछमण कार?
जै घड़ी-घड़ी खींची जावै
म्हारै पगां सारू इज नीं,
म्हारै मनसा सारू पण,
ई लिछमण रेखावां लागे!
कांई म्है आपरै घरां मांय
सुवटिया ज्यूं बंधक हूं?
म्हैं चिड़कली कोनी!
जद के बेट्यां नै तो
मायत आपरै बन री चिड़कली बतळावै!
क्यूं पूछै है बापजी वैपार सूं आवता ईन
'कै सोनू कठै ग्यी?
'नै म्हांरा सूं दूजी-तीजी बातां क्यूं नीं करै...?
म्हनै क्यूं नीं बतळावै धंधा री बात...?
नफा अर नुकसाण री तरकीबां?
क्यूं वै आवता ईन म्हारी
पढ़ाई री बातां इज छेड़े
क्यूं उणां नै ओ कोनी दीखै
'कै म्है भी मिनख हूं!
मायड़ सुवटिया रै चुग्गा-बुगा जिंया
म्हारै कनी थाळ भिजवाय देवै
अर पूछ लेवै 'कै
ओरूं कांई च्हावै है थारै?
म्हैं रोटी-साग सूं बत्तौ
और कांई नीं मांग सकूं हूं
म्हांरा पंख तो पिंजड़ा री
तंग ताड्यां रै हुवण सूं
आखा खुल कोनी सकै है,
म्है बतळा अर बोल सकूं
पण, पंख नीं खोल सकूं...।