दिन उगतां ही,

सूरजड़ो कर साथ,

आवै है तावड़ै रौ,

बाजे है डील रा

चामड़ा नित रोज...

कैयां बचां-बचावां,

काया ही जद हारी,

तावड़ियौ पड़्यौ है भारी।

स्रोत
  • सिरजक : नरेश व्यास ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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