हरी टांस

काची सांगरी री गलाई

देही

धोरां मझ

मुठ्ठी रेत री गलाई

देही...

झड़ जावै चाणचक

माटी रै मारग

सूकै खोखै रै उनमान

देही..!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : कमल रंगा
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