अदीतवार नैं बायो

बिना कीं छांटै-छिड़कै

सोमवार नैं उग आयो

मंगळवार नैं फळाप गयो

हे रामजी!

कांई खेलो है थांरो

अै कैड़ा बिरवा इयै बगत रा।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली राजस्थानी लोकचेतना री तिमाही ,
  • सिरजक : नवनीत पाण्डे ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी संस्कृति पीठ
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