काल म्हनै

अेक विधवा मिळी,

वा कैवण लागी

म्है पूरै दिनां हूं,

अेक संतांन नै जलम देवूंला।

आकळ-बाकळ

आपरा संस्करां झिळियोड़ौ म्हैं,

कीं नीं बोलियौ,

तौ बोली,

मूंडौ कियां उतग्यौ?

अै बुझाकड़ भलांई कीं कैवै

नुंवौ जलम, कदैई अनैतिक नीं व्है

नै सुण।

हरेक गरभ

थांरौ भविस्य व्है

इण री रिच्छा-भार

थारै माथै व्है

मांवां

जद-जद गरभधारण करै

मांनखौ उण री रिच्छा

आपरै माथै ओढ़ै

अबै

पूरै-पाटै

इण संतान रौ जलम व्हैला

किणी पंडत रै डर सूं

अधूरौ नीं जणूंला इणनै

नै, टाबर

थारै हाथां मोटो व्हैय

अंधारौ मेट

उजास रा मारग बतावैला

स्रोत
  • पोथी : सगत ,
  • सिरजक : शंभुदान मेहडू ,
  • संपादक : धनंजया अमरावत ,
  • प्रकाशक : रॉयल पब्लिकेशन ,
  • संस्करण : प्रथम
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