बाज रै भय बिना

उड़ सकै

चिड़कल्यां

उण रौ नाँव

है सुतंतरता

जठै-

गुस्सैल थार

लील नीं सकै

लस्कर कतारां

उजाड़ नीं सकै

झूपड्यां

उण रौ नाँव है सुतंतरता।

जठै-

बारूद री सुरंग्यां

नीं हुवै फैल्यौड़ी

अर

आदमी ले सकै

नचीती सांस

उण रौ नाँव है सुतंतरता

जठै-

फळफूळ सकै

बीज

आदमी

जूण री सांसां बुण सकै

उण रौ नाँव है सुतंतरता

जठै-

आदमी

रोटी रौ सुवाद

भूल्यौ नीं हुवै

उण रौ नाँव है सुतंतरता।

स्रोत
  • पोथी : थार बोलै ,
  • सिरजक : भंवर भादानी ,
  • प्रकाशक : स्वस्ति साहित्य सदन
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