खेजड़ो सिचलो

देंवतो परदेसी री ओळ।

बायरो डोकरो ज्यूं

सिसकै ढीली मांचली।

थारी लाज रै वरणी

होंवती पूरब री दिस

सांयत रै गिलगिली

सुणीजै चिड़कलियां रा बोल।

मिंदरां आरतो

फाटती जावै तर-तर पौ।

म्हारी नींदा सूती थूं

जगांवती जागै सुरजां-जोत!

स्रोत
  • पोथी : उतरयो है आभो ,
  • सिरजक : मालचंद तिवाड़ी ,
  • प्रकाशक : कल्पना प्रकाशन बीकानेर
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