म्हारी पांखां-नापती ऊँचो आकास,
घेर-घुमेर घाटियां री गैराई
मंगरा री गोद में ओपतो
सरबर रो चालक्तो पाणी मन भावै हो;
बांगां-बीच्चै आम्बा री डाली,
झुलां री रूत,
फागण री कामण गारी हंसी
दाड़म री सुवाद घणो याद आवै हो
किणी कौजे मिनख री
अपूठी टैम री
अणूती दीठ रे फैर में पड़ताई
अलोप होयग्यो म्हारो आकास
अबै तो-
उड़णो-उतरणो
बेठणो-गावणो
सुरंगी रूत में रूचि माफिक
फूलां री सौरम
फलां रो सुवाद गमग्यो
अर, महारा हिवड़ा रो गीत
पिंजरा में कैद हुया पछै थमग्यो
पिंजरे में पंछी झुर-झुर रोवै है
पिंजरा रो झूलो
सूली उपर सेज जणावै
पिव-पिव री टेर पे तड़फती
अेकली विरहणी री पीड़
म्हारी कुरलाट बधावै
तंगदिल इन्सानां री बस्ती में
सूरज में गरमास नीं जणावै
बायरी बीमार
चांद दरद सूं पीलो पड़तो
मरियल-मरियल निजरै आवै
पिंजरे में पंछी-रगत बरणी चौंचने
लोही सूं लथपथ करै
पांखां ने फड़फडावै
आख्यां रा कोया
राता-रैण करतो; बाथैड़ा भरतो
बार-बार उड़ जावणों चावै
पण, सुपनां री बातां रे पैला
पिंजरा री कैद री काळी रातां है
म्हे-म्हारा हिवड़ा री हूक ने दबातो
सुगन-पंछी रा गुणां ने भूल जातो
पिंजरा रा मालिक री मरजी मुजब
इण आस में गांवू हूं
कदे तो खुलैगा अेक फड़क्यो किवाड़
म्हे-इण अलूझाड़ रा कवाड़ सूं उड़ जाबूला
म्हारो आकास, म्हारी धरती
म्हारा हरियल बागां रा माणक चौक में
म्हारो पाताल
म्हारा सौन चिरैया सरीखा
सुगन-लोक में पूण आंवूला।