देखै है बिरछ

पान सूं

फूल सूं

फाळ सूं

बोलै है बिरछ

जड़ां सूं

घड़ां सूं

डाळ सूं

मरै है बिरछ

भूख सूं

तिरस सू

जरा सूं।

सोवै है बिरछ

उपाड़यै सूं ऊपड़ै

लगायै सूं

लागै है बिरछ।

बिरछ मांय नै मिनख मांय

कोई फरक नीं है

सुणो!

इण पिरथी माथै

बिरछ रो भी हक है

फकत आपरो

हक नीं है।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली पत्रिका ,
  • सिरजक : मोहन आलोक ,
  • संपादक : श्याम महर्षि
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