‘म्हारै प्रेम री

अेक कविता रच देवो!’

बोली अेक मदवी-मरवण

भुजबंधां मांय भर्यां अथाग पिरथी

आभै‘र पतळा-समेत अेकमेक

रळवां है

जिण मांय अेक सुर

सुर!

जिको आकारविहूण है,

अदीठ है

उणनै उचक्यां फिरूं बोम मांय

कितरो नैनो-सो है

सुर!

कितरो विराट है

इणरो विस्तार!

समाहित है

घुळवां है

अेकूंकार, जिण मांय

आखी रचणा-तणी सिंसार!

चाखूं हूं चकासा

म्हारा कंठ भूलग्यो है भासा!

‘मनै रळाय लेवो

थारा प्राणां मांय

थारा‘र म्हारा प्राण

महाप्राण रा अंस है!’

आवेग‘र आवेस सूं थरहर कंप्यो राज!

है तादात्मय री प्रक्रिया

विरह रा सात-समदां उपरां

अेक सेतुबंध

सातूं-समद-ई सातू-सूर होसी स्यात!

सेतुबंध, भुजबंध सूं अळगो है

कानां-पड़ती भणकार रा सबद

कद घड़ीजै!

अधर-होठां री रेखड़यां उपरां

सुपनाळा चित्राम कोरीजै!

मैं कियां रचूं

बा कविता?

थारै प्रेम री कविता!

स्रिस्टी रै नितनेम री कविता!

प्रेम तो जिस्यो थारो

बिस्यो सगळां रो!

अेक-स्यारखो है!

म्हारै मन रै ढोलै री मरवण

तू-ई है!

म्हारै सरव-बोध री उरवसी

तू-ई है!

म्हारै आतमग्यान री मेनका

तू-ई है!

मैं मात्र अेक पुरूष

तू नारी!

थारै प्रेम री कविता

रचण बैठयो हूं!

म्हारो प्रेमगीत

तू सुण सकै के?

स्रोत
  • पोथी : कूख पड़्यै री पीड़ ,
  • सिरजक : किशोर कल्पनाकांत ,
  • प्रकाशक : कल्पना लोक प्रकाशन, रतनगढ़ राज. ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै