घर है,
घर रै चौगड़दै भींत है
भींत घर रौ रूप घर रौ पड़दौ ई है,
भींता बिचाळै ऊभौ है मिनख
मन में अलेखूं भींतां लियां
भींत कुणसी भली मिनखां सारू?