घर है,

घर रै चौगड़दै भींत है

भींत घर रौ रूप घर रौ पड़दौ है,

भींता बिचाळै ऊभौ है मिनख

मन में अलेखूं भींतां लियां

भींत कुणसी भली मिनखां सारू?

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : राजू सारसर 'राज' ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा
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