आम तो म्हुँ

कैवउँ भाटो

करम फूटा नो

कौ -

कै पसे

करम नु कमाड़

उगाड़वा वारो

जैवो कर्यो उपयोग

एवो कैवायों हुं

कांगरे बैवाडो कै

भौंय मएँ डाटो

सुटो मारो

कै साने-साने

घडीने मूर्ति बणावो...

कै पछै

ठालो पड़्यो रैवादो!

असर तो देकाड़ूंगा

म्हारु वजूद

तमारा हाथ मएँ

गली मएँ मारो तो

कांकरी-सारो,

नदी मएँ रम्मत

ने आम्बे गम्मत

छौरियँ नै हात मएँ-

तो पांचिका

नेता ने मारो तो

लोकतंत्र माते खतरो

भटकेली मानसिकता हामै

मानवाधिकार नु हनन,

जै चावौ

बणी जउँ!

स्रोत
  • सिरजक : आभा मेहता 'उर्मिल' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
जुड़्योड़ा विसै