मतीरो बजाय नै

नीं बता सकां म्है

कै बो काचो है कै पाको...

कोरो घड़ियो कड़काय नै

नीं बता सकां म्है

कै बो साबत है कै राइजैड़ो!

डांगर रा दांत देख

नीं बता सकां वां री उमर

छिंगास करती गा-भैंस नै देख

नीं बता सकां

कै बा ग्याभण है या खाली!

जिनावरां री मनगत ओळख नै

नीं कर सकां म्है

मौसम री ओलखाण।

म्हारो अजाणपणो

मामूली नीं है...

मौत है हजारूं पीढियां री

अर मौत है अेक भासा री!

स्रोत
  • सिरजक : जगदीश गिरी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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