बीरा म्हारा सुणो आज थे बेनड़ रै मनड़ै री बात।
बेनड नीं मांगै थां सूं कदैई कोई अणमोल सौगात।
साथै खेल्या मोटा हुया हेत बेनड रो हैं अटूट।
ब्याव हुयो बेनड़ रो जद घर गयो बीरां बो छूट।
बाबुल बेटी लाडली होवै माँ रै काळजिया री कोर।
सुख-दुख बीरां भोगिया रळ मिळ आपां च्यारूं ओर।
नीं मांगू बीरां गैंणा गांठी अर पांति थारी बपौती।
मांगू तो बीरा हांथी मांगू प्रेम री भूखी बेनड़ सपूती।
बेनड़ रै मन में बीरां हर पल पीवर री रैवै फरियाद।
बचपन बित्यो जठै आवै रूंखा री छांव घणी याद।
मां बाप बीरां सदा ही नहीं रैया करै हर कोई रै साथ।
अमर पीहर भाई-भतीजा रो, बात कह गया ज्ञानी नाथ।
बार तिंवार बुलाइजो बीरां, घणी मनवार करज्यो मान।
लेवण री भूखी नहीं हुवै बेनड़ करज्यो थे पूरो सम्मान।
माथै हाथ फेरज्यो स्नेह सूं मिलज्यो थे गळै लगाय।
भूल सूं भी कदैई मत थे, मनड़ो दीज्यो बीं रो दुखाय।
सूरज सींचै नित बेनड़ तो अरज करै आ रविराज।
हे! सूरज देवता मेहर राखजै तूं सुण म्हारी अरदास।
सोना रो सांकळो अर गळ मोत्यां रो रैवै हार।
सूरज भगवान कै अर्घ्य देतां जीवै बीर भरतार।
भली चावै बीरां री सदा ही लिज्यो बीं री आशीष।
नहीं लागै किणी री बुरी निजर अर कोई दूराशीष।
ऊँणे टूणै आयर उभज्यो नहीं करज्यो थे देर।
सासरियै मान राखज्यो मैं थारी मां की जाई बीर।