अेक बात कैवणी चावूं म्हैं थांनै

थें जिका धुंवाळी कोटड़ी में बैठ्या

विधना रा अंक गिणौ

नै सीस झुकाय'र

नूं चावण लागौ

थें जिका रोजीनां कांधिया बण'र

आप-आपरी अरथी

मसाणां पुगावौ नै फेरूं

दादू-दुवारै रै दातार अंधारै में

कांगिसयै री तपास करौ

थें जिका राड़ नै बाड़ सूं बचता फिरौ

अर कोई रौ ढ़क्योड़ौ कोनी उघाड़ौ

अेक अरज करणी चावूं म्हैं थांरै साम्हीं

कै मूंडौ लटकायां मोती मिलै

नीं मांग्यां-तांग्यां झोळी भरै

पगां में बिछिया बांध्यां बिनां

घूमर नीं घालीजै

अर निजर में डांडी साध्यां बिनां

दो पांवडां नीं चालीजै

दुनियां नै पीठ देवण सूं

तिरपत कोनी व्है आतमां

अबै तौ थांनै मंजल तै कर

सावळ विचारणौ है कै सामरथ रै पांण

कित्ता सांस लिया जा सकै

कीकर मोड़या जा सकै मारणै बळद

रा सींग

सांकड़ी गली में!

किण भांत ग्यारस रौ कड़

बारस ने काढ्यो जा सकै

जिण सूं समै रौ असवार चारा पगमंडण

जोवतौ बूझतौ लारै-लारै सकै!

स्रोत
  • पोथी : पगफेरौ ,
  • सिरजक : मणि मधुकर ,
  • प्रकाशक : अकथ प्रकासण - जयपुर
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