अेक रिवाज री

बुगची होवती

मिनखां रै आंखियां मांय

पाणी होवतो

जाणता हा सगळा

मोटै-छोटै रो कायदो

नीं कदैई रीसाणो होवतो

नीं करड़ा बोल होवता

जे होवता तो

मिनख पेट मोटो राखता

हेत अणमाप होवतो

भाई-भाई रो गांव

सगळो सगो होवतो

अबै बै बातां नीं रैयी

मिनख धुक धुक नै

हेत- प्रेम मिटाय दियो

बोलो-बालो खुद में ईज

मिनख रमग्यो

बाड़-किंवाड़ पूछै

अबै कै कठै गया बै

पैलड़ा मिनख

जका जीवण नैं

जीवण बणाय राख्यो हो

कठै गया बै मायत

जका अकाळा सूं

जूझता थकां

हिम्मत नीं हारी

जीवण नैं पाछो पनपायो

कठै गई बा

रिवाज री बुगची!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : सुमन पड़िहार ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि शोध संस्थान
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