मन म्हारो जद भर आवै।
पाणी टोळती बायां देखूं,
टूक बिलखतां टाबर देखूं।
काळ-छांव में कागद खाती,
गायां देखूं॥
मन म्हारो जद भर आवै॥
जंगल में जद रूंख कटै,
दुनिया में जद राड़ मचै।
मूंछा री टेक राखणै खातर,
मिनखां ने मरता देखूं॥
मन म्हारो जद भर आवै॥
रामायण रो रावण मरग्यो,
रावण रा रगत बीज ऊगा।
नीति नै नागी कर,
सूळी पर चढ़ती देखूं॥
मन म्हारो जद भर आवै॥
नर’री खान नै बळती देखूं,
रीत कुरीति पळती देखूं।
हाका करती ने लाय झोंकता,
चित्कारा करती देखूं॥
मन म्हारो जद भर आवै॥
मूंगारत री मार खावतो,
हळ बेल्यां में झोळ खावतो।
लूण डळी सूं रोट्यां खाता,
जगपाळक करसाण ने देखूं॥
मन म्हारो जद भर आवै॥
दुनियां में सस्त्रा री होडां नै,
आपस रा मचता रोळा नै।
बापू री तस्वीर चिंतारतो,
अखबारां में देखूं हूं॥
मन म्हारो जद भर आवै॥