कठै है बसन्त
म्हे उणनै सोधियौ
धरती सूं आकास तांई
गमलै सूं बनराय तांई
रगत वरणी पुसबां री जगां
द्रोब माथै बिरवर्या दीस्या
ताजा लोही रा छांटा
कठै है बसन्त?
बसन्त री कविता
लिख्यां ई कद
बसन्त आवै है जीवण में
कविता रै सांच
अर जीवण रै सांच रो
आंतरौ घणो बघग्यौ है
इण दिनां।
इण मोटी मोटी
पोथ्यां में नीं है बसन्त
अर नीं है बसन्त
भींत माथै
जतन सूं टांकियोड़ी
उण मूंधी पेन्टिंग में
जिणनै थें मोल लाया हा
घणै चाव सूं।
थे भलांई
गुलदस्तै मांय
सजा लो पीळा-पीळा फूल
बांध लो वांदरवाळ द्वारा माथै
पण बसन्त
नीं आवैळा इण डेळी।
बसन्त रो
वास फूल-कळियां में नीं
चितराम पोथ्यां में नीं
उण रो वास
जठै व्हिया करै है
उण ढौड़ नै कहीजै हियौ
अर इण दिन
हियै मांय
बदबू, काळख
अर बिडरूपता रा डेरा है
फेर अठै बसंत
कांई लेवण नै आवैला?
कठै है बसंत
म्हे उण नै सोधियौ
हियै सूं हियै तांई
घर-गळी-गांव
छापर-ढांणी
सै’र री सड़का माथै
फर्राटा भरती कारां में
बाजतै टैप सूं
बसन्त री गज़लां-गीतां
रो बोल तो सुण्या
पण नी दीख्यौ बसंत
सायद इण दिनां अेक
सबद हुयगौ है बसंत
अर सबद री
अबखाई या के
वो फगत सुणीजै
के पढीजै।
कठै अदीठ हुयग्यौ
है बसन्त
म्हे खुद नै ई पूछूं
अर पडूत्तर री उडीक में
जोवूं हूं थांरी पलकां नै
जकी बन्द है इण वगत
कदास इण मुंदी पळकां रै
पसवाड़ै सुसता
रह्यौ व्हैला बसंत।