कोरी खुस्की नीं है

इण बेकळू मांय

बैठ मुळकतो

बजातो सारंगी

सुर-सुर री सुर सागै

बेकळू री धुन

सुंगध री छटा

मुळकतो आभो

बांधणै री जुगत

मनवार करतो

सारंगी री धुन सूं

निरवाळी धुन निकाळतो

निजरां मिळावतो

ऊभो आभो

जियां बाउल साम्हीं

बेकळू नैं गळै लगावै

मुळकतो-मुळकतो

आभो।

स्रोत
  • सिरजक : राजेन्द्र जोशी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोडी़
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