सासू

आंसू ढळकावती थकी बोली-

बीनणीसा सुणो हो!

आज थांरै

सुसरोजी रो सराध है

सासू रो नाटक देखती थकी

बीनणी बोली-

जिको

थांरो भेळो करणो है कांई।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : कालू खां ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी संस्कृति पीठ राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़
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