डागळा माथे कागलौ बोले
आगम-निगम ना भेद खोले
मुटके-मुटके शिखंडी फरैं हैं
देखयं हुं नै करैं हूं
देखयं रूपारा पण मन ना काळा
आ हुं केवाय
कुदरत नी माया के घौर कळजुग नी छाया?
म्हूं तौ देखाऊं काळौ पण
आ हेत्ता डूंगळी जैवा
केने'क बणावे, केने’क वगाड़े
केने'क बचावे केने'क उजाड़े
मुंडे गोळ सरखा
मयं फणगा ना खोडा सरखा
मन नी मंसा थकी गोथेला
हुकायेली डूंगळी वजू
ऊपर थकी पाणीदार, मालदार
पण उघाड़ौ तौ आंखें ददड़ें
नाके पाणी पअें नै हाथ अे बाळें
अेकावाहें फोंतरं, खाली फोंतरं।
अैणं ने औळखवू काठू
चूंटी थकी घूटी सुधी बेरूपिया।
म्हूं तौ जाणितौ काळौ कागलौ हूं
पण डागळै-डागळै रंगायेला हेंयार फरें हैं
म्हारै डागळै बेहवू ठीक न्हें
म्हूं वन मयं’ज ठीक
अेटले हेत्ता कागळा वनचारी थअें
सराध मअें हादौ तौ आवें नै
पाछा उड़ी जयं
नै रंगायेला हेंयार
डागळे-डागळे फरें हैं,
आपड़ी गुणी खुद गअें हैं।