लाय बण गई दुस्मण
लाय बास्ती रो रूप लेय’र
मायड़-सी रही,
जाड़ां सूं सदैव बचावती रैयी
रोटी भी सेकती रैयी
पण अब तो दुस्मण
बणगी आ ईज बास्ती।
कदै तो नौ सितंबर री तबाही
कदै छब्बीस नवंबर री
लाय लगाती
टाबरां नैं मारती
अर अब बण बैठी
आतंक्यां रा हथियार जैड़ी
तो गाड़ दो लाय नैं।
लाय जो कोनी व्हैली
तो खा लेवांला साग भी काची
खा लेवांला नाज भी काचो
जाड़ो भी सह लेवांला
गाड दो लाय नैं ऊंडी
कै आ लाय
बारूद रै नैड़ी भी कोनी दीखै।
कोनी चावै लाय
न मगज में न काळजा में
गाड दो ऊंडी लाय नैं।