सोनलिया धोरां पर

पसरै रात

मून गवाही देवै

धरती

अर आभै री बंतळ

घेरदार घाघरो पैर्यां

दूर सूं

मुळकतो लखावै

सोनार किलो।

स्रोत
  • सिरजक : राजेश कुमार व्यास ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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