चंदण महके इण आंगण में,

इण में केसर- क्यारी है।

मस्त झूमता रंग-बिरंगा,

फूलां री फुलवारी है॥

माथै मोत्यां जड़या मुकट नै,

सूरज करै उजागर जी।

अठे गडोळ्यां राम रम्या है,

नाच्या है नटनागर जी॥

यो घर गांधी गौतम रो है,

नानक और कबीरा रो।

नामदेव रैदास संत रो,

मेड़तियै री मीरा रो॥

धरती या अवतारी, प्यारी,

धरती या महतारी है।

मस्त झूमता रंग-बिरंगा,

फूलां री फुलवारी है॥

ब्रह्ममोर्‌त में अठै हमेशा,

कोयल बुल-बुल बोलै है।

मिट्ठू रो मीठास बाग में,

तितली भँवरा डोलै है।

पंख पसारयां मोरया नाचै,

नहीं कणीं ने अंदेशो।

हंस-कबूतर उड़-उड़ बाँटे,

विश्व-शांति रो संदेशो॥

या धरती तो युगां-युगां सूं,

ओजस्वी उपकारी है।

मस्त भूमता रंग-बिरंगा,

फूलां री फुलवारी है॥

हार सरीखो हिया ऊपरै,

पावन पाणी गंगा रो।

लहरै लाल-किला अर संसद-

माथै मान तिरंगा रो॥

खेत किसानां नै अर सीमा,

सौंपी सैनिक सच्चां नै।

जन-गण-मण रो भार सौंपद्यो,

नवीं-पौध रा बच्चां नै।

शेर सपूतां री या धरती,

तेजस्वी–तपधारी है।

मस्त झूमता रंग-बिरंगा,

फूलां री फुलवारी है॥

कदम-कदम पै मिनखाचारो,

महके मिट्टी-पाणी में।

आयत और ऋचा रं लारै,

ग्रंथ-सा'ब री वाणी में॥

गिरजाघर में घंटी बाजै,

कठै आरती मिंदर में।

नमन आणी नै करै हमेशा,

लहरां उछळ समन्दर में॥

ज्ञानी-ध्यानी हुया अठै हो,

धरती सिरजणहारी है।

मस्त झूमता रंग-बिरंगा,

फूलां री फुलवारी है।

पांच कोस पै पाणी बदलै,

बीस कोस पै वाणी भी।

इण धरतो पै गांव-शहर अर,

खेड़ा-मजरा-ढाणी भी॥

पण सगळां में मनै दिवाळी,

ईद सिवैयां बाँटै है।

भाँत भाँत रा रंग, लोग मिल

होळी रं दिन छाँटे है॥

अठै उगावै फसल हेत री,

धरती या हितकारी है।

मस्त भूमता रंग-बिरंगा,

फूलां री फुलवारी है॥

स्रोत
  • पोथी : पसरती पगडंड्यां ,
  • सिरजक : शिव 'मृदुल' ,
  • प्रकाशक : चयन प्रकाशन, बीकानेर
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