जीवण तो आपणे ही यूं जीणो पड़े है

फाट्‌या चादरा ने भी तो सीणो पड़े है

मीरां ने सुकरात ज्यूं छौर्‌यां ने रोज-रोज

खुद रे हाथ सूं तो जेर पीणो पड़े है....

सांच ने तो आंच नीं केवै है सब जणा

झूठ बोल-बोल ने रेवै है सब जणा

धरम ध्यान न्यायखाने रोज बिक रिया

सांच री सौगन जठै लेवै है सब जणा

मन री सुणे मन री केवै सुण भेद री वातां

मावस मां मान ला हां पण पूनम री रातां

मन आंगणा रा माण्डणा फागण री हवा

वसन्ती बादल्या वेद री वातां

धारा लारे धार मोड़ वैवंती रेवै

कांकरा रे कालजा में पोवती रेवै

होम री हवि है या बळ-बळ ने रेखा

चारूंमेरी गन्ध या फैलावंती रेवै॥

लीला-लीला खेत री काची काकड्यां

खिलखिल्या गुलाब री काची पांखड्यां

उळझ-उळझ सुळझ-सुळझ झड़ उतर-उतर

छोरियां जीवै है जूं जाळा री माकड्यां

लोकगीतां री या मीठी-मीठी रागणी

चंग ढप रै लारै जाणै धुन है फागणी

राधा री प्रीत या कान्हा री वांसरी

मगन मीरां-पगल्यां री घुंघर्‌यां वाजणी

हिवड़ां रे हाथां री मेहन्दी राचणी

माण्डपा सूं मोह भी हटावती रेवै

घरा लारे धणी भी वटावती रेवै

रूपवती हाड़ी तो चूण्डा रे मोह पे

खुद सूं खुद रो मोह भी हटावती रेवै

लाज लारे लाल वे लाजती रेवै

घूघर्‌यां ज्यूं—ज्यूं छमक—छमक वाजती रेवै

वे जवार बाई वैर्‌यां रै खातरां

रणभेरियां वे घड़ड़ घड़ड़ बाजती रेवै

आण ने बवाय दे दूध रे लारे

आण माण पे तो अपणा पूत ने वारे

चन्दणां री गंध हंघ हूंघ पन्नाधाई

हर ही टाबर्‌‌यां में अपणा पूत ने नारै

रूप रंग गुण सूं रीझावती रेवै

वैरियां रे मन ने खीझावती रेवै

देस रो बोझ व्यो तो कूद जौहरां

पण रींगणा ने सींझावती रेवै...

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत मार्च-अप्रैल 2007 ,
  • सिरजक : रेखा व्यास ,
  • संपादक : लक्ष्मीकान्त व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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