सुबै स्याम दोपार डावड़ी,

मुँडै घूँघट सार डावड़ी।

मूंडो ढकणु काण काईदो,

थारै खातर भार डावड़ी।

घूँघट जै माथै सरक्यौ तो,

काडै गाळ्यां च्यार डावड़ी।

रूढ़िवाद री लीक पीटर्‌यां,

सास ससुर भरतार डावड़ी।

घूँघट आज अज्ञान अंधेरों,

कियां पड़सी पार डावड़ी।

भरी दोपारी काम करै नित,

इण घूँघट कै लार डावड़ी।

घूँघट लारै सबळा छिपग्यां,

गैणूं और सिंणगार डावड़ी।

घूँघट मैट, मान रख छोको,

घर गृहस्थी रौ सार डावड़ी।

बेटी बहू बण दो कुण त्यारै,

थारै स्यूं परिवार डावड़ी।

हिळमीळ सबळा हेत राखीज्यै,

मन उमंग झंणकार डावड़ी।

घूँघट मैट रख ज्ञान चांदणूं

तु तो है हकदार डावड़ी।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : ओम बटाऊ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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