बातां में हुवै पुळ

जणांई जुड़ै

मिनख सूं मिनख

बातां में हुवै मायनो

मिनखपणैं रो

बातां में

बाढ्यां बावळ

बात बणै नीं सावळ

बात रुवावै-हंसावै

बात सूं बदळीजै

जग रो ढंग-ढाळो

पछै बातां सूं

क्यूं कोई रो

काळजो बाळो?

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 7 ,
  • सिरजक : अशोक परिहार 'उदय' ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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