इण बस्ती में अबै कांई रैवणो

आखो दिन थे वो बारै

अर आखी रात थांरा बारणा रैवै बंद

इण गळी सूं तो ऊठगी थांरी सौरम

अब इण बस्ती में कांईं रैवणो

फगत रैयगी है थांरी निरमळ गति अर आवेग,

झरणा नदियां में,

जिकी कोनी मावै म्हारै सामरथ री झोळी में

फगत रैयगी है थारै प्रांणां री पुलक,

दिखणी पूंन में,

जिकी कोनी बंधै म्हारी भुजावां में

फगत रैयगी है थांरी देहाभ,

अकास रै रोसणी आंचळ में,

जिकी म्हैं परस कोनी सकूं

बस सुणीजै थांरी हंसी फूलां में

जिकी कोनी मावै म्हारी थाळी में

थै कोयल रा कंठां में गावो

पण कोनी समझू म्हैं

सुर या सबद थांरी भासा रा

जुड़ाव तो कटग्यो हो आंवळ नाळ कटतां

थारै कनै रैवण से उछाव रीतग्यो अबै तो

अबै कांई रैवणो इण बस्ती में।

स्रोत
  • पोथी : निजराणो ,
  • सिरजक : सत्य प्रकाश जोशी ,
  • संपादक : चेतन स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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