बड़लै मांडै हींड, तीजणियां सावण गावै

बोले दादूर मोर, पपीहा, जद बरसाळो आवै.!

जेठ बैसाखां तपै तावड़ा, धरा धूम गरर्नावै

ताती 'राती' हुवै धरणी, जद बरसाळो आवै.!

धरती कर सिणगार, रावजी इंद्र नै रिझावै

अंतस रै उनमान आज ई, जद बरसाळो आवै.!

मृगा बाजै, तपै रोहिणी, लूवां जोर खूंख़ावै

कांठळ उमटै देख कळायण, जद बरसाळो आवै.!

बाजर, मोठ, गुवार, मूंग कण, निपजै सांचा मोती

हरखै जीया-जूण अमोली, जद बरसाळो आवै.!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : मघाराम लिम्बा
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