कान्है रो मोरमुगट
आप रै हाव-भाव सूं
बणाव-ठणाव सूं
दरसायो कै
बांस री बंसरी सूं
हूं इधको हूं
माथै रो मौड़ हूं
बधको हूं!
आ सुण बंसरी बोली-
मुगट! म्हारी बात सुण,
ठिमराई सूं गुण
थारै-म्हारै बीचै
अंतर समझ
जीवण रो मन्तर समझ!
थूं खुद नै सजावण खातर
सोनो गळवावै
मोती बिंधवावै
पण हूँ
सिरजण खातर
खुदो-खुद नै बढवाऊं
काळजै में छेकला करवाऊं
थूं लोगां नै डरावै
हूं प्राणी-भाव नै रिझाऊं!
पण आ है साव साच
आपां दोनूं हां
कान्है रै हाथ...
आपां दोनूं कीं नीं कर पावां
बो नचावै ज्यूं ई नाचां
पण नाचणै रो भाव समझ
न्यारो-न्यारो प्रभाव समझ...
बंसरी जद
कान्है रै होठां चढै
उण रै मन-माथै रचै
तद मुगट थनै अर
कान्है रै माथै नै
दोनां नै मनचाया
नाच नचावै अर
मुगट थूं ई लुळ-लुळ
बसंरी नै माथो नवावै।
ठहर, अेक बडो अन्तर फेरूं सुण-
जे मोरमुगट
किसना री पिछाण है
तो बंसरी कान्है री जान है...
मुगट चिंतण है
तो बंसरी संवेदण है
मुगट मथुरा है
तो बंसरी विनरावन है
मुगट महाभारत है
तो बंसरी गीता है
मुगट अहं है
तो बंसरी समरपण है
मुगट तानाशाही रूप है
तो बंसरी जनतंत्र सरूप है
मुगट सरबनासी जुध है
तो बंसरी परेम-सांति-सिरजण है।
मुगट! अंतरपट खोल
समै नै तोल
खुद रो समझ मोल
मुगट थारै पाण ई आज
जग री भूंडी सूरत है
आज मुगट री नईं
बंसरी री जरूरत है
मुगट! आज मुगट री नईं
बंसरी री जरूरत है।