फूल कळी

रंग-झीणी गळी

पून-पुरवा

सौरम भीणी-भीणी

रंग-रूड़ी रात

चांद-तारां री बात

रळवां सांस

खिलती कळी

नि:सांस उच्छवास

सोक्यां मायं तूं

दीसै बणी-ठणी।

धरती रो छोर

उगती भोर

ढळती सांझ

मनड़ै रीसांझ

सुरां री सांझ।

घूघरां री

रूण-झुण रूण-झुण

टोकरां री झणकार

रूप री झणकार

सूरज तणो ताव

चंदै सो उणियार

जाणै आभै तणै

माथै चिलकै

रंगराती सी मणी

बिखरी ज्यूं अणी-अणी

सोक्यां मायं तूं

दीसै बणी-ठणी।

सुपना रो बिस्वास

आवै लो मधुमास

टूटै भळै

सांस तणी डोर

नी टूटै आस

ओस तणा मोती

चाटै जीभ

नी बुझै प्यास।

ऊमर रा उमराव

समै तणा पाना

पळटै काळ

छाना-माना

हवळै हवळै

रीतै सांस तणो

घड़लो

जीवन तणी सांझ

ढळी की ढळी

अबै तो आव

खम्मा घणी खम्मा घणी।

कद अवैली तूं

बणी-ठणी।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोकचेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : लीटू कल्पनाकांत ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
जुड़्योड़ा विसै