म्हैं बणावणी चावूं

एक ऐड़ौ घर-परिवार

ऐड़ौ गळी-मोहल्लौ

ऐड़ी देस-दुनिया

जिण मांय भींतां नीं हुवै.....

थारौ-म्हारौ रौ

ईसकौ नीं हुवै

नीं लड़ाई-झगड़ौ

नीं खूब-खराबौ

नीं बमबारी रा धमाका ......

नीं लड़ै भाई, भाई सूं

नीं देव्यां री लुटै आबरु

नीं हुवै रंग-भेद

नीं हुवै जात-पांत, छुआ-छूत

नीं हुवै किणी रै

हवैली-झूंपड़ी रौ टंटौ......

सगळा हिलमिल रेवां

एक नवी दुनिया रौ

रचाव-बसाव म्हारौ सुपनौ

कांई कदैई साचौ हुसी?

के फूट जासी

पाणी रै बुलबुलै दांई...

स्रोत
  • सिरजक : बसन्ती पंवार ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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