अेक

मायड़
दिन उगै जाय
सांझ पड़यां आय
बाछरू री निजरां में
बेपरवा गाय!

दोय

खूंटै बंध्या
बाछरु री भांत
टोपला में
टाबर रंभावै
पण मायड़
माथै पर धर्‌या भाठां नैं
हिवड़ा पे मेल अर
काम करती जावै।

तीन

सुख रो
मजूर सूं हेत
आधी तगारी सिमेंट
अर
तीस तगारी रेत।



स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : रमेश ‘मयंक’ ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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