महारै जीवां पर

बैठी है

म्हारै हेताळुवां री मरजी

बखत

म्हांरा छींगण्या कर खड़ जावै

म्हांनै वरजे

बोलबा नी देवें

न्हावो तो दूर री बात

बायरै री नदी में

पग भी झकोळवा नीं देवै

जीभ री जाजम पर

बैठया है

म्हारी सांसां रा पासा

ऊंचा उछाळ ढक देवे

पौबारा पड़चा

कै तीन काणा?

म्हांनै कांई तोल?

म्हांरी बाजी म्हांरा डांव तो-

म्हारै हेताळुवां रै हाथ है।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : अम्बिका दत्त ,
  • संपादक : माणक तिवारी "बंधु"
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