बगत रो परिन्दो

तेज रफतार में उड जावै है

दुख सीना में जद मचळ जावै है

दरद आंसू बण ढळ जावै है

जिणरै हिवड़ै मांय धड़कै है दिल

दूजां रै दरद सूं वो पिघळ जावै है

वादा करता कदैई नीं थाका

जिका लोग

अक्सर वादां सूं फिसळ जावै है

जका स्वारथ, मोह छोड देवै है

अक्सर

वै आपरी तकदीर बदळ दैवै है

मिनख इत्ती तो दुनियादारी

सीखग्यो है कै

बात बिगड़ै, तो बात सूं मुकर जावै है।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली जनवरी-मार्च 2014 ,
  • सिरजक : ज़ेबा रशीद ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी संस्कृति पीठ राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति
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