बगत अणूंती मुसकल मांय है...?
सगळां रो
ओ ईज कैवणो है
कै बगत माड़ो है।
बगत मन मांय सोचै
हुय सकै है कै
आपां नैं ई
नीं ठाह हुवै
आपणै बाबत।
आखतो हुय’र
बगत देखै है आरसी
दिखै है साम्हीं चितराम
कै आदमी पीवै है
आदमी रो ई लोही...
अर जियां ई
घड़ी-दो घड़ी रो
मिलै ओसाण
तो मुंडो ऊपर उठा'र
आदमी कैवै है-
'बडो माड़ो बगत है।'