जद

किणी नाळा मांय

अेक भ्रूण मर्‌योड़ो मिलै

तो भी-

नाळी में बैंवतो रैवै पाणी

अर रैंगता रैवै कीड़ा।

जद

राजपथ पै

लोग फेंक जावै

किणी मरियोड़ी री

लुगाई री देह

काळी करतूतां पछै

तो भी-

राजपथ पै चालती रैवै

गाडियां बिना रूक्यां।

जद

मिनखां रै मन में

डरप रो सांप बैठ जावै

आतंक सूं कोई नीं बचावै

मरजादा री बाड़

टूटती निजर आवै

तो भी

बबूल, नागफणी अर कैक्टस रा

बधता कारोबार नैं देख 'र

गुलाब खिलणों कोनी छोड़ पावै।

जद

पटरी पार करतां टाबर

धड़धड़ाती रेल सूं ख्च्च होय जावै

मायड़ टाबरां री रोटी सारू

लपलपाती जीभां री चपेट में

आय जावै

तो भी

रेलां चालती रैवै

कामगर औरतां आंवती-जांवती रैवै।

जद सहर बधता जावै

जंगळ सिमटता जावै

नदियां रो जळ

इमरत कोनी कैवावै

बदबू फैलावै

तो भी-

कारखानां रा कारोवावर पै

कोनी लागै लगाम।

आप कैवो

स्मार्ट सहर मांय मिनख

नीं तो सोवै, नीं थाकै

फगत जागतो-चालतो रेवै

तो भी-

मैं कैवणों चावूं

आप तो सगळी हदां नैं

तोड़ न्हाखी है पण

कयामत आवण में

अबै भी बगत बाकी है।

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो 2016 ,
  • सिरजक : रमेश मयंक ,
  • संपादक : नागराज शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिणजारो प्रकाशन पिलानी
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