नील गगन में बाट जोवतां,
आंख्यां ऊंची रै’गी रै।
आसा रो दिवलो जोडन्ता,
बाती बळ बळ कैगी रै॥
हार जीत औ टीपणियां री,
बातां जूटी जावै रै॥
तरस्या नै क्यूं छोड़ बादळी
किण देसां बिलमाव रै॥
हिवड़ै हूक जगावै रै॥
बिन पाणी सब खेत सूक्या ,
सूक्या नंदी-नाळा ओ।
रूँख-बरख औ जंगल सूक्या,
सूक्या समन्दर खारा ओ।
तरस्योड़ा पखेरू फड़ फड़,
यूं तड़फ्योड़ा जावै रै।
तरस्यां नै क्यूं छोड़ बादळी,
किंण देसां बिलमावै रै।
हिवड़ै हूक जगावै रै॥
घास-पूस औ कड़बी खूटी,
ढाण्डा अब कंई पावै रै।
खळी मिलै नी, दाणा दिखैनी,
बाछर जद कांई खावै रै।
गायां री सूकी आंतड़ियां,
सांसां निकळी जावै रै।
तरस्यानै क्यूं छोड़ बादळी,
किण देसां बिलमावै रै।
हिवड़ै हूक जगावै रै॥
घी दूध औ धान नूटग्यो,
टाबर बिलख्या आवै रै।
देवणवाळो राम रूठग्यो,
भूख सुळगती जावै रै।
फूल सरीखा मूंडा अै तो,
धान बिना मुरझावै रै।
तरस्यां नै क्यूं छोड़ बादळी,
किण देसां बिलमावै रै।
हिवड़ै हूक जगावै रै॥
घर छूट्या औ गळियां छूटी,
छूट्यो प्यारो गाम जी।
हीम और हीमाड़ा छूट्या,
छूट्यो राजस्थान जी।
जळम भौम नै यूं छोड़तां,
पग आगै नहीं जावै रै।
तरस्या नै क्यूं छोड़ बादळी,
किण देसां बिलमावै रै।
हिवड़ै हूक जगावै रै॥
धन औ माया सगळी बिछड़ी,
बिछड्या लोग लुगाई रै।
कुटम्ब कबीलो सारो टूट्यो,
टूटी धरम कमाई रै।
भूखा तरस्या दुखियारा यूं,
दर-दर भटक्या जावै रै।
तरस्या नै क्यूं छोड़ बादळी,
किण देसां बिलमावै रै।
हिवड़ै हूक जगावै रै॥