बाबुल थांरै आंगणै सूं,
ले चाली प्रेम री धूळ
इतरा दिन तो डाळ्यां छंगरी,
अब कटर्या है रूंख समूळ।
घर में जाई, गोद खिलाई,
परण बापजी करी पराई
जामण भूल्या, आंगण छूट्या
जद जाके बेटी भली कुहाई
काची-काची हेत री डाळी,
चर गया नेम असूल
इतरा दिन तो डाळ्यां छंगरी,
अब कटर्या है रूंख समूळ।
बीर-भतीजा प्रीत रा चोखा,
खूब सुंवारै ठूणा-मौका
भावज म्हारी सीतळ चंदा,
कदै न जीव दुखाई नंदा
पण थे ना दिखो तो बाबुल,
म्हारै तो गाढी सून
इतरा दिन तो डाळ्यां छंगरी,
अब कटर्या है रूंख समूळ।
मायड छोडी बाबुल थाम्या,
थे छोड्या अब कुण आसी सांमा
चुम्या बथेरा ममता का मोती,
अब तो हंसा जासी लांधा
जितरा दिन की बची जिंदगी,
उतणी बिछोह री गडसी सूळ
इतरा दिन तो डाळ्यां छंगरी,
अब कटर्या है रूंख समूळ।
मंदरा-मंदरा नैण बरसर्या,
उठै हूक भयंकर
कोरी-कोरी नयन कटोरी,
बणगी आज समंदर
कुण रै मनड़ा धीर बंधासी,
आंसू आप ई जासी सूख
इतरा दिन तो डाळ्यां छंगरी
अब कटर्या है रूंख समूळ।