बात स्यात सदां बण जावै,
रचना कदे-कदास।
तपै धरा जद अेक आग में
खातां-पींता नींद-जाग में
आभौ उमड़-घुमड़ छा जावै
बरसै मूसळधार!
इन्द्र-धनख री छटा दिखावै
बिखरै रंग हजार!
अै रंग स्यात रोज तण जावै
रचना कदे-कदास।
अरथ सबद में, सबद अरथ में
रच-बस जावै परत-परत में
ढाई आखर सिर्फ बात रा
पण कुण करै पिछाण?
हिय सूं मन तक अेक जातरा
गेला पण अणजाण
गेला स्यात रोज बण जावै
रचना कदे-कदास।