बाप, कांई हुवै!

किसी आभ उणरै वर्चस्व री

कठै चिलकै उणरौ वजूद

संबंधा री दुनिया में!

कित्तौ अणबूझ है बाप रौ मन

कित्ती अळूझ्योड़ी उणरी क्रियावां

बेसुरी झणकार है बाप

परवार री मधुर सरगम में।

बाप, कद जाणी मन री मरजी

कोई नीं झालै उणरा बोल

कोई दूजौ हुवै नियंता

उणरी जीवण-पद्धति रौ।

बाप, मुखियौ फगत नांव रौ ई,

वौ तौ है अेक जमूरौ

जादू रै खेल रौ।

बाप, कदै हुवै टाबरां रौ ‘हाउ’

तौ कदै डरावै ‘बाबौ’ बण,

वौ घोड़ौ बण सकै गट्टू रौ

पण निषेध है उणरै वास्तै

लाड-लडावणौ गोदी में,

कहीजै, बाप रौ प्यार

बिगाड़ देवै टाबरां नै

कांई पडूत्तर है बाप खन्नै?

बाप तौ बस, सवाल सवाल है!

बाप, केहड़ौ है जीव?

कांई है उणरौ वर्चस्व

कांई है उणरी हस्ती,

बाप बण्यां ठा पड़ै।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : पुरूषोत्तम छंगाणी ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा
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