आगली सोची पाछली

चाणचक ही समदर रै-

सोडियै स्यं उठ'र

एक अधगैली पांगळी बादळी,

पकड़'र रुत री चिटली आंगळी

चढ़गी सूरज रै घर री डागळी,

लागी असाढ़ री करड़ी तावड़ी

पड़गी सांवळी, दाजगी चामड़ी,

डरती गुड़' भोम कानी बावड़ी,

पकड़

बांवळियो

पून

दकाली-

फिट माजनूं, अठीने बळ आगड़ी,

पछै पिसताई ही घणी बापड़ी,

रो-रो'र भर दिया गैला'र गळी

जणां बीरी सैण बीजळी-

बोली, ईयां करयां कांई हुसी बावळी

अब तो 'मैं' मिटा'र कर लै

थारी काया नै ऊजळी,

आभै जिसी हर

आभै में ही जा मिली।

स्रोत
  • पोथी : आज री कवितावांं ,
  • सिरजक : कन्हैया लाल सेठिया ,
  • संपादक : हीरालाल माहेश्वरी, रावत ‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍सारस्वत ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : pratham
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