अस्यो बी कांईं हो ग्यो

रुसर ही बैठ ग्या थां

असी बी कांईं खोट होंगी

म्हारा मन सूं

असी भी कांईं कढ़गी

बलगी

काली जबान सूं

अतनी सीक ही तो

क्ही छै

म्हूं सबसू अनमोल छूं

काईं खोटी कह दी

देखा अेक बार थांका

मन मं झांक'र,

देखो तो म्हारी नाईं की

और बी बैठी छै कं?

भीतर।

स्रोत
  • सिरजक : मंजू कुमारी मेघवाल ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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