आरसी में म्हारै सांम्ही बैठौ आदमी

म्हनै कूड़ लागै

के पछै म्हैं झूठौ छूं?

आरसी कीं नीं कैवै

म्हैं बोलूं

तो म्हारी कूंट्या काढतौ

थकलौ हिलाय लेवै होठ

कर लेवै हाथां रा लटका

म्हारै ज्यूं री ज्यूं

इण बापड़ी आरसी री कांई जिनात

के छळ करै म्हां सागै

पण कठै कठै

इणरा कूड़ में भेळी छै

म्हारी मूंन

जिकी म्हारै बोलतां पांण परगटै

पण सांम्ही नीं आवै

अर आरसी लारै जाय लुक जावै...

स्रोत
  • पोथी : हिरणा! मूंन साध वन चरणा ,
  • सिरजक : चंद्रप्रकास देवल ,
  • प्रकाशक : कवि प्रकासण, बीकानेर
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