म्हनै सदा ईं

डर लागै छै

या जाण'र

कै म्हारा मन में

पनपी उम्मीदां

पूरी होवैगी

या न्हं हो पावैगी

जीवण का संग्राम में

कद कुण-सो घमासाण हो जावैगो

ऊं में म्हारी

जीत को झंडो लहरावैगो

या

म्हारी सारी उम्मीदां

हो जावेगी

स्वाहा

हर्‌यां-भर्‌यां रूंखड़ां की

ठंडी-ठंडी बाळ में

मिलेगी म्हारै तांई

किसी अमराई की

ठंडी छांव

जिंदगाणी का सुनहरा सुपना

पूजेगा म्हारा पांव

या

सूखी धरती पर

हो जावैगो

म्हारो

तप्यो हुओ-सो तन-मन

अर

खाक हो जाऊंगो म्हूं।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : हेमन्त गुप्ता पंकज ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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