कल्पना रै समंदर में

डूबूं-तिरूं

जथारथ री जमीं माथै

उतरतां लागै डर।

क्यूं है

सुपना अर साच में

आंतरो?

मून भांगै

मा रो हेलो-

‘लाडेसर!

कमठाणै कोनी जावै कांई आज?’

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : गंगासागर सारस्वत ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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