बारै-बारै सैचत्रण
अर मांय-मांय अंधार घुप्प
मगसा पड़ता जाय रैया है
जूण री बही रा आखर
पसर रैया है
उणरा भूंडा चितराम
हियै रै मांय हाथ धर’र
बैठयां कियां सरैला?
छैकड़ तो लड़नो ई पड़ैला अंधारै सूं
बाळणो ई पड़ैला मोह रा अणूंता जाळ
क्यूंकै म्हनैं
चासणो है अेक अखंड दीवो।
अंतस रै मांय
भरणी है नवै होठां माथै मुळक
सींचणी है जूण नैं
नवी अर अबोट साख सूं
दीयो चावै माटी रो हुओ
चावै आखरां रो
उजास उणरो राज धरम है
अंधारै रो वंस-बैरी चानणओ।