म्हारे कनै
अेक ढिग लाग्योड़ो है
अणकही बातां रो।
किणी कैयो—
कहाणी कैय दै
किणी कैयो—
कविता घड़लै
किणी कैयो—
चाल, जी ई हळको करलै।
कठै सूं सरू हुसी बातां
बातां रो लेखो-जोखो
कदै राख्यो ई नीं हो।
लिखणी ही जिकी बातां
बै बुसक्यां बणगी,
कैवणी ही जिकी बातां
बै चुप होयगी।
अबार मुजब
फगत कीं किंतु-परंतु ईज है,
इणरै टाळ और कीं है, तो
बै है पिछतावा!