इत्ता नाराज क्यूं हौ बापू

जे म्हैं नीं मानी थांरी बात

गयौ परौ

थांरै बरजतां थकां बारै

लारै

थे उडीकता रैया म्हारी बाट।

कुण कियौ आकास इत्तौ बदरंग

दिसावां

क्यूं आपरी ओळख गमाय दी

क्यूं फेर जमीं

पांणी बदळै लोही री मांग करै?

थे आरां उत्तर नीं देय सकौ

परवा नीं,

म्हैं बिना उत्तर नीं रैय सकूं।

जे म्हैं गयौ परौ

गरम हवा

अर धारदार हालात साथै

गस्त लगावतै

खतरै साम्ही

मुकाबलै सारू

मित्रां साथै

उकेरतौ सवालां रा जवाब

तौ क्यूं उदास आंगणै

थे बेराजी ओढ अबोला व्हेगा।

थे इज कैवता

वां दिनां

उण बगत

नीं सुणी

किणी री थे

अर निकळगा हा बारै

आपरी जमीं

आपरै आकास री

घोसणावां करता

नरभक्सी, अंधारी दिसावां रै मांय

लारै थांरी बाट जोवती रैयी

घर री थळी

तूटोड़ी मचली नीचै फाटोड़ी जूत्यां

अेकांनी उदास पड़्यौ

टाबर रौ गाडूल्यौ

तद सुणौ कोई री थे

मानी किणी री?

फौलाद सूं बत्तौ मजबूत व्है आदमी

दावानळ सूं बत्ती तेज व्है, अंतस री लाय

थे साबित करी

भोटा पड़गा दमन रा तमाम हथियार

थां लोगां सूं टकरीज’र

पाछा पड़ण लागा हा, साही घोड़ां रा पग

थांरी अगन-झळ में अपड़ीज’र

खतरौ उण बगत कम नीं हौ

सूखगी ही कटोरदान मांयली रोटी

दुखियारण रसोई में सोयगी ही

थांनै देवण साय झरूंटिया मंडाय’र

दोय पाका बोर लियोड़ौ

सोयगौ हौ म्हैं

थांरी बाट उडीकतौ

दादोसा री मारग मुखी आंखियां

नीं झपकी ही सारी रात।

हाल

भर-सरदी देखूं थांनै टसकता

उण रात जिण विध थे झेल लिया बार

पसवाड़ा फेरण लागै वा जूंनी मार

उण बगत थे

सगळा रिस्ता झाड़-झटक

गया परा बेलियां रै लार।

पच्छै, इत्ता नाराज क्यूं हौ बापू

जे म्हैं नीं मांनी थांरी बात।

म्हांरी बात

म्हांरी जमीं

म्हांरै आकास सारू

देखौ बापू

इण बदरंग व्हियोड़ै थांरै आकास सारू

गयौ परौ काटीज्योड़ै फौलाद रा

छिलका उतारण

लेय रंदौ

बणा टोळौ

गुण-अवगुण थांरा पाळतौ

रैवूं म्हैं चालतौ

धरौ

धरौ म्हारै मोर थांरौ हाथ

बापू, इणमें नाराजगी री किसी बात।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : अपरंच प्रकासण
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